मत करो चिंता

   चिंता  के बारे में इस तरह सोचिये कि पिछले  महीने भी आप चिंता कर रहे थे,  लेकिन  अभी भी आप मजे से
जी रहे  है।  जो चिंता   कल  थी वह आज नहीं है। अपने अनुभव से आपको समझना चाहिए कि चिंता करने  से  कुछ नहीं होताहै ,उससे जितना जल्दी हो सके बाहर  आ जाना चाहिये।  योग और ध्यान चिंता से बाहर  आने में आपकी मदद करते है।  अगर  ये भी आपकी मदद नहीं करते तो उन लोगो को देखिये कि  जिनकी समस्याए आप से ज्यादा बड़ी है। अगर ये भी आपकी मदद नहीं करता तो एक मानसिक चिकित्सालय में जाइए और आप पाएंगे कि आप दुसरो के मुकाबले बहुत ही अच्छी स्थिति में है। अगर यह भी काम नहीं करता है तो एक श्मशान जाइये और देखिये कि वहा किस तरह से लोग आ और जा रहे है। आपको भी एक दिन वही पहुचना है ,तो फिर किस बात की चिंता। आप जो भी हो, जितने भी प्रभावशाली हो, जितने भी धनवान भी हो, जितने भी शक्तिशाली हो, लेकिन एक दिन आपका भी यही हश्र यही होना है। लोग आते है, आपको चिता के हवाले करके लौट जाते है और फिर अपनी जिंदगी जीते है।  अगले दिन उनका जीवन पहले की तरह चलता रहता हैं।  यह दुसरो के साथ ही नहीं बल्कि आपके साथ भी होता है।  आप भी दुसरो  को श्मशान  छोड़कर आते है और अपनी जिंदगी जीते  हैं।  हर कहानी का अंत ऐसा ही है। जिस क्षण आप यह महसूस कर लेते है कि जीवन तो चलने का नाम है तो फिर किसलिए चिंता करना। जीवन एक चक्र है अच्छा  और बुरा समय आता है तो फिर चिंता  की क्या जरुरत है यह तो संसार का नियम है कि कुछ अच्छा होगा तो कुछ आपके मन का नहीं भी होगा , फिर चिंता क्यों करना।

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